संपादकीय

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वर्ष 1999 में ज़ीन्यूज में काम करते हुए पहली बार इंटरनेट के संपर्क में आया। तब तक हिन्दी की बहुत कम वेबसाइटें हुआ करती थीं। जो थीं भी, उनके फॉन्ट स्थिर यानी स्टेटिक हुआ करते थे। अर्थात हिन्दी में साइट देखने के लिए पहले उसके फॉन्ट डाउनलोड करने होते थे, तब जाकर आप उसकी विषय-सामग्री को पढ़ पाते थे। यह देखकर मन में एक कसक-सी रह जाती थी। काश हिन्दी भी तकनीकी तौर पर इतनी ही उन्नत होती! हिन्दी में एक समग्र वेबसाइट बनाने की चाहत बार बार हिलोरें मारती थी। गागर डॉट कॉम नाम से रजिस्टर भी कारवाई। प्रस्ताव भी बनाया। लेकिन खर्चे का अनुमान लगाकर देखा तो हिम्मत जवाब दे गई। कई संस्थाओं और व्यक्तियों से बात की, लेकिन कोई सफलता हाथ नहीं लगी। वर्ष 2000 में उत्तरांचल राज्य बना तो फिर जोश आया। हमाराउत्तरांचल डॉट कॉम नाम से वेबसाइट बना डाली। अपनी पत्रकारिता की नौकरी के साथ साथ लगभग छह वर्ष तक यह भी चलाई। लेकिन तब तक भारत में वेबसाइटों का कोई राजस्व मॉडल नहीं बना था। कहीं से कोई आमदनी नहीं थी। नतीजतन वह भी बंद करनी पड़ी। इसलिए वह इच्छा दबी ही रह गई कि हिन्दी में एक वैबसाइट होनी चाहिए।

अब, जब नौकरी की आपाधापी से लगभग मुक्त हूँ, एक बार पुनः यह प्रयास किया है।

इस बीच हिन्दी का नेट संसार बहुत कुछ बदल चुका है। यह दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ रहा है। हिन्दी में तकनीकी तरक्की भी काफी हद तक अद्यतन है। वीडियो और औडियो की दुनिया में भी क्रांतिकारी बदलाव आ रहे हैं। हिन्दी का ही नहीं, समस्त भारतीय भाषाओं के मीडिया का विस्तार हो रहा है। उसका स्वरूप बदल रहा है। उसमें विस्तार की बेतहाशा संभावनाएं आज भी बनी हुई हैं। लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। भारत का मीडिया अपने अस्तित्व के संभवतः सबसे चुनौतीपूर्ण दौर में है, क्योंकि उसकी साख जितनी आज दांव पर लगी हुई है, उतनी कभी नहीं थी। सोशल मीडिया ने जनता के हाथ में नंगी तलवारें सौंप दी हैं। निश्चय ही यह एक संक्रमण का दौर है। लेकिन मैं आशावादी हूँ। कुहासा छंटेगा और स्वस्थ पत्रकारिता की जय होगी।

अपना यह छोटा-सा प्रयास आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए मन में खुशी भी है और झिझक भी। अभी यह एक निजी प्रकल्प ही है। पुत्र-पुत्री और पुत्रबधू तीनों ने अपनी कला से इसे संवारने की कोशिश की है। साथ ही कुछ प्रिय विद्यार्थियों ने भी अमूल्य योगदान किया है। समय को किसने देखा है! कौन जानता है, कल यह क्या रूप लेता है!

आपके स्नेह का आकांक्षी,

गोविंद सिंह

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