हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी कमजोरी क्या है? इस सवाल का तत्काल उत्तर यही हो सकता है कि हमारी चुनाव प्रणाली ठीक नहीं है. वह योग्य लोगों को चुन कर संसद या विधान सभाओं में नहीं भेज पाती. और यदि चुनाव प्रणाली की सबसे...
निर्वाचन आयोग ने सात अप्रैल से 12 मई तक एग्जिट पौल यानी मतदान के तत्काल बाद जनमत संग्रह के प्रसारण या प्रकाशन पर रोक लगाकर उचित ही किया. क्योंकि पिछले 3-4 चुनावों से लगातार ओपीनियन और एग्जिट पौल्स की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगते रहे हैं. वे न...
इसमें कोई दो राय नहीं कि इस बार के चुनाव में बदलाव की जबरदस्त आंधी चल रही थी और नरेन्द्र मोदी इसके वाहक बने. लेकिन सवाल यह है कि ऐसा कैसे हुआ और कैसे उसे वोट में परिवर्तित किया जा सका? इसका एक ही...
यह बात सही है कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) भारतीय नौकरशाही का मेरुदंड रहा है, लेकिन यह भी उतना ही सही है कि उसके भीतर अंग्रेजियत के विषाणु जन्मजात रूप से जमे हुए हैं. आज तो फिर भी बहुत कुछ बदल गया है,...
भला हो आनंद महेंद्रा और चारु शर्मा का, जिन्होंने कबड्डी जैसे खालिस हिन्दुस्तानी खेल को राष्ट्रीय परिदृश्य में स्थापित करने का बीड़ा उठाया है. आज आईपीएल की तर्ज पर देश में प्रो-कबड्डी लीग के लिए आठ टीमें कबड्डी-कबड्डी करती हुई टीवी के परदे पर...
मई में जब नरेन्द्र मोदी ने भारत के प्रधान मंत्री पद की शपथ ली थी तब सचमुच यह आशा बंधने लगी थी कि शायद अब भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सामान्य हो जायेंगे. भारत और पाकिस्तान में ही नहीं, सारी दुनिया में मोदी की पहल...
यों तो परिवर्तन जीवन का नियम है और भाषा का भी अपना जीवन होता है. उसमें भी वक़्त के साथ परिवर्तन आते हैं. ‘उदन्त मार्तंड’ की भाषा आज एकदम अजीब-सी लगती है. कई-कई बार तो समझ में भी नहीं आती. लेकिन परिवर्तन जब स्वाभाविक...
भाषा के मोर्चे पर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक ऐसी रेखा खींच दी है, जिसके सामने अब तक की सारी रेखाएं छोटी पड़ गयी हैं. यह रेखा है कूटनीति की मेज पर हिन्दी की. राजनीति यदि जनपथ है तो कूटनीति राजपथ. कोई भाषा...
अपने देश में 14 वर्ष के काल-खंड का ख़ास महत्व है. इसी अवधि में भगवान् राम चन्द्र ने वनवास पूरा किया और आसुरी प्रवृत्तियों को पराजित कर एक नयी व्यवस्था अर्थात राम-राज्य कायम किया. ऐसा राज्य, जिसमें न भय हो और न भेदभाव हो. यानी 14 वर्ष का काल...
उत्तराखंड की कुल आबादी एक करोड़ से कुछ ही अधिक है. फिर भी हमारे पास 19 विश्वविद्यालय और 80 से ज्यादा सरकारी और 300 से ज्यादा निजी महाविद्यालय और उच्च शिक्षा के संस्थान हैं. मात्रा के हिसाब से देखा जाए तो यह तस्वीर बुरी नहीं है. लेकिन गुणवत्ता के लिहाज से...