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आस्था के डेरे किधर जा रहे हैं?

सतलोक आश्रम के बाबा रामपाल ने कानून-व्यवस्था से बैर मोल लेकर अपने आप को तो डुबाया ही, पंजाब-हरियाणा के अन्य डेरों को लेकर भी संदेह के घेरे में ला खड़ा कर दिया है. यही वजह है कि पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट को दोनों राज्यों की...

चुपके-चुपके जर्मन थोपने की साजिश

अपने देश में कुछ भी संभव है. जो होना चाहिए, वह नहीं होगा. जिसकी दूर-दूर तक कोई संभावना न हो, अचानक पता चलेगा कि वह हो गया. क्यों हुआ, कैसे हुआ, इसका किसी को पता नहीं. देश भर के 500 केन्द्रीय विद्यालयों के 78 हजार छात्रों पर एक...

क्या सचमुच बहुरेंगे रेडियो के दिन?

यों तो साल २०१४ में बहुत-सी बातें पहली बार हुईं, लेकिन मीडिया के क्षेत्र जो सबसे ज्यादा चोंकाने वाली बात हुई, वह थी, रेडियो को मिली अप्रत्याशित तवज्जो. जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रेडियो को अपने मन की बात कहने के माध्यम...

कहाँ गए हमारे कार्टून?

कार्टून पर हमले भलेही यूरोपीय देशों में हो रहे हों, लेकिन अपने देश में वह पहले ही मरणासन्न हालत में है. साढ़े तीन दशक पहले जब हमने पत्रकारिता में कदम रखा था तब लगभग हर अखबार में कार्टून छपा करते थे, उन पर चर्चा...

महान कार्टूनिस्ट लक्ष्मण नहीं रहे

थियो, अभी-अभी पता चला है कि महान कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण हमारे बीच नहीं रहे. पुणे के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया. वे ९४ वर्ष के हो गए थे. अभी पिछले हफ्ते ही भारतीय कार्टून को याद करते हुए हमने उन्हें याद किया था....

पत्रकार क्यों बेमौत मारे जा रहे हैं?

शाहजहांपुर में जिस तरह से जगेन्द्र सिंह नाम के स्वतंत्र पत्रकार की आग लगाकर कथित हत्या की गयी, उसने एक बार फिर भारत को प्रेस-विरोधी देशों की अग्र-पंक्ति में लाकर रख दिया है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की प्रेस फ्रीडम सूची में भारत 180 में...

हिन्दी को चाहिए राम चौधरी जैसे सेवक

पिछले दिनों (२० जून, २०१५) अमेरिका में हिन्दी की छत्र-छाया समझे जाने वाले डॉ राम चौधरी का निधन हो गया. डॉ चौधरी के जाने का तो दुःख है ही, लेकिन इससे भी दु:खद यह है कि हिन्दी मीडिया में इसकी सूचना तक नहीं दिखी....

हिंदी के विस्तार को व्यवस्था दीजिए

क्या आप जानते हैं कि हिंदी की झोली में कितने शब्द हैं? शायद नहीं जानते होंगे। हम भी नहीं जानते थे। जानें भी कैसे? कौन बताए? भला हो ग्लोबल लैंग्वेज मॉनीटर का, जिसने गत वर्ष अपनी सालाना रिपोर्ट में यह बताया था कि हिंदी में महज एक लाख 20 हजार...

पहले शिक्षा में तो हिन्दी को लाइए

हिन्दी दिवस, हिन्दी सप्ताह, हिन्दी पखवाड़ा और हिन्दी मास. यानी सरकारी कामकाज में हिन्दी लागू करने-कराने का अभियान. इस अभियान के तहत हम अक्सर उन नौकरशाहों को जी-भर के कोसते हैं, जो हिन्दी को सरकारी फाइलों में नहीं घुसने देते, जो सरकारी चिट्ठियों में...

सरकारी स्कूलों को बचाइए

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सचमुच आँखें खोल दी हैं. उसने केवल उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राइमरी स्कूलों की दशा की पोल नहीं खोली है, वरन पूरे देश की सरकारी स्कूल व्यवस्था पर करारा तमाचा जड़ दिया है. आखिर ये नेता, ये अफसर, ये अमीर लोग...

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