इसमें कोई दो-राय नहीं कि हिन्दी पत्रकारिता ने पिछले कुछ वर्षों में जबरदस्त छलांग लगाई है. अखबारों का प्रसार गाँव-गाँव तक हुआ है, अंग्रेज़ी के साढ़े तीन करोड़ पाठकों की तुलना में हिन्दी के १५ करोड़ पाठक आज देश में हैं. सबसे ज्यादा प्रसार...
इस देश की कोई ४० फीसदी आबादी हिन्दी को अपनी पहली भाषा मानती है. बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जो उसे दूसरी भाषा मानते हैं. मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, ट्रिनिडाड, नेपाल, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा और खाड़ी देशों में भी...
विश्व हिन्दी सम्मलेन से पहले कुछ हिन्दी प्रेमी मित्रों ने यह आशंका जताई थी कि इस बार के सम्मेलन का एक हिडन एजेंडा भी है, कि सम्मेलन में ऐसा प्रस्ताव पारित हो सकता है कि हिन्दी के विस्तार को देखते हुए देवनागरी की जगह...
सात जून १८९३ को दक्षिण अफ्रीका के पीटरमेरित्ज्बर्ग स्टेशन पर यदि मोहनदास करमचंद गांधी नामक युवा वकील को गोरी पुलिस धक्के मार कर ट्रेन के फर्स्ट क्लास डिब्बे से निकाल बाहर न करती तो शायद हमें इस देश का राष्ट्रपिता न मिला होता. कई...
पत्रकारिता निरंतर अपना चोला बदल रही है. उसके अनेक रूप चलन में हैं. ऊपर से शुरू करें तो अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता, राष्ट्रीय पत्रकारिता, प्रादेशिक पत्रकारिता, क्षेत्रीय पत्रकारिता, जनपदीय पत्रकारिता, स्थानीय पत्रकारिता, अति स्थानीय पत्रकारिता, सामुदायिक पत्रकारिता और नागरिक पत्रकारिता. सोशल मीडिया उसका एक और रूप...
आज के समय में सच्ची पत्रकारिता एक कठिन कर्म है. यह कर्म तब और भी मुश्किल हो जाता है, जब पत्रकारिता स्थानीय स्तर की हो. स्थानीय से हमारा आशय स्थान विशेष से है. अर्थात जब किसी अखबार के पाठक ठीक उसके सामने बैठे हों...
आज कुछ जल्दी घर आ गया. शाम को रोज की तरह टहलने का मन हुआ. श्रीमती बोलीं, क्यों न आज गाड़ी में कुछ आगे तक चलें, बाद में बाजार भी हो आयेंगे. कई दिनों से हम शाम को टहलते हुए एक नए रास्ते पर...